Wednesday, August 4, 2010

सावन की बूंदों से


सावन की बूंदों से

रिमझिम रिमझिम वर्षा से,
जब तन मन भीगा जाता है,

राग अलग सा आता है मन मे,
और गीत नया बन जाता है।

कोशिश करता कोई शब्दों की,

कोई मन में ही गुनगुनाता है,

कोई लिए कलम और लिख डाले सब,

कोई भूल सा जाता है।

सावन का मन-भावन मौसम,
हर तन भीगा जाता है,

झींगुर, मेढक करते शोरगुल,

जो सावन गीत कहलाता है।

हरियाली से मन खुश होता,
तन को मिलती शीत बयार,

ख़ुशी ऐसी मिलती सबको,

जैसे मिल गया हो बिछड़ा यार।

गाड-गधेरे, नौले-धारे सब,
पानी से भर जाते है,

नदिया करती कल-कल,

और पंछी सुर में गाते है।

"सावन की बूंदों" का रस,

तन पर जब पड़ जाता है,
रोम -रोम खिल जाता है सबका,
स्वर्ग यही मिल जाता है।


दीपक पनेरू
मथेला सदन, तुलसी नगर,

पॉलीशीट, हल्द्वानी।

3 comments:

  1. "सावन की बूंदों" का रस,
    तन पर जब पड़ जाता है,
    रोम -रोम खिल जाता है सबका,
    स्वर्ग यही मिल जाता है।
    ..man ke komal bhavnaon ka sundar chitran..

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  2. अच्छी रचना , बधाई आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ......
    कभी हमारे ब्लॉग पर भी आए //shiva12877.blogspot.com

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  3. बहुत सुंदर

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